धरमपुरी. नर्मदा के बीच (टापू में स्थित) पांच हजार साल पुराने शिव मंदिर में जाने के लिए प्रशासन द्वारा बनाया गया अस्थाई पुल शुक्रवार को डेम से पानी छोड़ने के कारण टूट गया। महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में दर्शन करने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी लेकिन पुल टूटने के कारण श्रद्धालु मंदिर तक नहीं पहुंच पा रहे है। लापरवाही बरतने पर श्रद्धालु प्रशासन के अधिकारियों पर गुस्सा उतार रहे है।
जानकारी के अनुसार धरमपुरी के पास नर्मदा की दो धाराओं के बीच तीन किलोमीटर लंबा और 600 मीटर चौड़ा द्वीप बना है, जिसे रेवा गर्भ स्थान कहा जाता है। इस टापू पर तीस हजार वर्ग फीट पर श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। शिवरात्रि पर हर साल यहां बड़ा आयोजन होता है जिसमें लाखो श्रद्धालु शामिल होते हैं। शिवरात्रि पर्व को देखते हुए प्रशासन ने अस्थाई रास्ता बनवाया था। लेकिन शुक्रवार सुबह डेम से पानी छोड़ने के कारण यह रास्ता बंद हो गया। मंदिर पहुंचने का रास्ता बंद होने से श्रद्धालु भड़क गए और उन्होंने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए तहसीलदार को घेर लिया। लोगों में गुस्सा भड़कने की जानकारी मिलने के बाद कलेक्टर व एसपी भी मौके पर पहुंच गए है।
1970 में डूब गया था शिवलिंग
गणपति घाट पर अदभुत शिवलिंग था, जिस पर जल चढ़ाने वाले की पूरी आकृति दिखती थी, लेकिन 1970 की भीषण बाढ़ में यह शिवलिंग बह गया।
- 30 हजार वर्ग फीट पर है महादेव का मंदिर
- मंदिर के समीप ही महर्षी दधीचि व उनकी पत्नी की समाधि है।
- टापू के दक्षिण में भगवान दत्तात्रेय व नर्मदादेवी की प्रतिमाएं हैं।
- नर्मदा धारा की मुख्य धारा के उत्तरी तट पर प्राचीन गणपति घाट बना हुआ है।
- मंदिर में नंदीगण, हनुमान और गणेश की मूर्तियां है।
- द्वीप का उल्लेख स्कंद पुराण रेवा खंड में आता है।
- यहां विभिन्न प्रजातियों के सर्प बड़ी संख्या में हैं लेकिन आज तक सर्पदंश जैसा कोई हादसा नहीं हुआ।
स्वयं भू क्यों
मनोकामना वश सूर्यवंशी महाराजा रंतिदेव गुरु वशिष्ठ के आज्ञानुसार यज्ञ और तप करने कुब्जा तीर्थ आए। यज्ञ के दौरान महाबाहू सबाहू नामक राक्षस विध्वंस करने लगे। यह देख देवता डर गए। महाराज रंतिदेव ने अपने मंत्रबल से राक्षसों को पराभूत किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से शिवलिंग उत्पन्न हुआ, बिल्व और आम्र फल की आहुति की तो नाम पड़ा स्वयं भू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव शिवलिंग (रेवा महात्मय के संवत 1755 के अध्याय 21 श्लोक 60,61,62 व 69 में उल्लेख)